Wednesday, 3 September 2014

ज्ञान का सागर!

ज्ञान का सागर!


किनारे किनारे चले थे हम,
अनजानी सी थी राहें,
अनकहिंसी थी मंजिले!

वो आपही है जिन्होंने;
सागर की गहराईओं से
ज्ञात कराया;
सही दिशाओंसे
परिचित कराया;
और एक विशाल दृष्टी का
एहसास दिलाया!


जबसे मिलन  के क्षण 
विलिन होते जा रहे है 
राहें और भी लंबी हो रही है 
भले ही मंजिलें और भी है 
पर मजधार में हम है फसें 
इक हुक सी उठी है ह्रदय में 
आपसे दूर होने की !

काश!
समय को अपने मन की डोरी से 
बाँध लेते हम 
कुछ क्षण, कुछ पल 
और जी लेते हम...
ज्ञान के सागर में 
थोड़ा और डूब लेते हम ....
कुछ क्षण और जी लेते हम....

मिलिंद कुंभारे

Friday, 7 March 2014

स्त्रीमन

 स्त्रीमन

नको करूस असे भावनांना पापण्यांत कैद
उघड मनाची सारी बंद दांर......
बळ पराकोटीचे तुझ्या पंखांत
तुजसाठी आज मोकळे सारे आभाळ......
घे भरारी, कर सार्थक स्त्रीजन्माच
शोध तू एक नवीन वाट
गवसेल बघ तुला एक नवीन पहाट.....
सरतील काळरात्री, बदलतील युग………

स्त्रीमन म्हणजे एक झरा
प्रेमाचा, वात्सल्याचा,
सतत पाझरणारा,
कधीही न आटणारा…।

महिला दिवसाच्या हार्दिक शुभेच्या

मिलिंद कुंभारे

Wednesday, 26 February 2014

मायमराठी


 मायमराठी

मायमराठी अमुची तू मायमाउली,
अवीट तुझी गोडी, अजरामर तुझी थोरवी,
सकलजनि, मनोमनी तू सदैव चिरंजीवी,
संपवी तुज ऐसा, त्रीलोकांत कुणी नाही …….


मिलिंद कुंभारे