Wednesday, 27 November 2013

तुला आठवू पाहतो मी

                                                                     

 तुला आठवू पाहतो मी
कधी बंध तुटले, कधी स्वप्न विरले
निसटले कसे क्षण सुखाचे, कळेना ….

कधी पाश सुटली, कशी प्रीत विटली
हरवले कुठे दिस गुलाबी, कळेना ……

कितीदा तुला रोखले, साहले मी
तरीही तुझी पावले का वळेना? ……

कितीही मनाशी ठरवले जरी मी
तुला विसरण्याचे मला का जमेना?……

जरीही बदलली दिशा तू स्वत:ची
तरी का मला आठवे तू? कळेना ……

मिलिंद कुंभारे

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