Thursday 6 June 2013

ज्ञान का सागर!

ज्ञान का सागर!


किनारे किनारे चले थे हम,
अनजानी सी थी राहें,
अनकहिंसी थी मंजिले!

वो आपही है जिन्होंने;
सागर की गहराईओं से
ज्ञात कराया;
सही दिशाओंसे
परिचित कराया;
और एक विशाल दृष्टी का
एहसास दिलाया!

अब रास्तें बहुत लंबे नजर आतें है;
मंजिलें और भी है;
मंजधार में फसें है हम;
एक उलझन सी है;
आपको अलविदा कैसे कहें हम!

काश! वक्त को रोंक लेते हम;
कुछ क्षण, कुछ पल;
ज्ञान के सागर में;
थोडा और डूब लेते हम!

मिलिंद कुंभारे
http://britmilind.blogspot.com/

2 comments:

  1. अप्रतिम, सुंदर, छान

    ReplyDelete
  2. मिलिंद मला पण हिंदी कविता पोस्ट करायच्या आहेत काही मदत करशील का ?

    ReplyDelete

अप्रतिम, सुंदर, छान