ख़ामोशी!
जिंदगी को गुमराह कर;
कहीं खो गये थे हम!
मंजिलें कहीं और थी;
रास्तें कहीं और थे;
कहीं और
चल दिये थे हम!
वो आप ही है;
जिनकी आहट पाकर;
फिर संभलें है हम!
जिंदगी तो एक विराना था;
चारों ओर जैसे;
निराशाओं का अँधेरा!
वो आप ही है;
रातों के अंधेरों में;
जैसे दिन का उजाला!
हमारी जिंदगी का सवेरा!
बड़े खुशनसीब है हम;
आपके साये में;
जैसे समंदर है आप;
और किनारे-किनारे
चल दिये है हम!
फिर भी न जाने क्यूँ;
थोडा उलझें-उलझें से है हम;
आपके करीब होकर भी;
आपसे बहुत दूर है हम!
न जाने क्यूँ;
कल भी खामोश थे;
आज भी खामोश है हम!
मिलिंद कुंभारे
ये खामोशीया तोड दो
ReplyDeleteमन में है जो बोल दो
दिल के घावो को युं खुला ना छोडो
बेरुखी के बंधन को तोड दो …
नदी की एक धारा बानो .
किनारो पे क्या रखा है
तुम किसीका सहारा बनो ,
मायुसी में क्या रखा है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,सुनिता
नदी की एक धारा बानो .
ReplyDeleteकिनारो पे क्या रखा है
तुम किसीका सहारा बनो ,
मायुसी में क्या रखा है ,,,,,,
क्या बात....liked this......thanks....