Wednesday 22 May 2013

ये पागल मनवा!


ये पागल मनवा!

थमसी गयी हैं जिंदगी!
रुकें  रुकेंसे हैं कदम!
फिरभी न जाने क्यूँ
किसकी राह तकें है;
ये पागल मनवा!

खोया खोया सा हैं चाँद!
रूठी रूठीसी  हैं चांदनी!
फिरभी-----------

बरसों हो गये;
बादल को गरजतें सुना नहीं;
बरखा को बरसतें देखा नहीं!
फिरभी-----------

श्याम अभी ढली नहीं;
सुबह अभी हुई नहीं!
फिरभी-----------

अब कोई किसे कैसे समझाये;
ये तेरे बावरें नैं;
क्यूँ करें हैं इंतजार?
उस ढलती हुई श्याम का;
धुंधलीसी सुबह का;
और ठंडे ठंडे पवन संग
झूमती हुई बहार का!

न जाने क्यूँ
किसकी राह तकें है;
ये पागल मनवा!

मिलिंद कुंभारे

1 comment:

  1. वाह वाह क्या बात है !!!!!!!!

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अप्रतिम, सुंदर, छान