Thursday 23 May 2013

दस्तक

Photo: दस्तक

अनजानी दुनिया,
और मै तनहा,
पतझड का,
एक सुखा पत्ता.......
न जाने कैसे
जा टकराया,
दी एक दस्तक,
और खुला बंद दरवाजा.......
भीतर था एक चेहरा,
जाना  पहचानासा,
कराया उसने परिचय अपना,
मुस्कान नाम था  उसका,
पल दो पल उसने,
मुझे निहारा, परखा,
यूँ उदास देख मुझे,
उससे रहा न गया,
और मुस्कुराते हुए कहा,
एक गुजारिश है तुमसे,
तुम यूँही मुरझाया ना करो,
मौसमों का क्या,
आते, जाते रहते  है ...........
कभी तुम
सागर किनारे टहला करो,
उन लहरों में,
जीवन है समाया
पूरा समंदर न सही,
कुछ बुंदेही समेट लो,
हथेलियों में अपने ..........
कभी तुम
अंबर की उन,
नीली नीली गहराइयों में
झाँका करो,
पूरा आसमान न सही,
थोडा आसमानी रंग,
जीवन में अपने भर लो ........
यूँ हमेशा तुम
रेगिस्तान के मुसाफिर
न बना करो,
कभी तुम,
रिमझिम बारिश में भीगा करो,
पूरी बरसात न सही,
थोड़ी बुंदे पलकों में अपनी समालो .......
हमदम मेरे,
कभी साथ मेरे चला करो,
संग मेरे,
जीवन सागर में थोडा डूबा करो ........
देखो तनहा तुम कभी न रहोगे,
जीवन से तुम बेहद प्यार करोगे ........

न जाने कब, कैसे,
एक हवा का झोंका,
आ टकराया.... और,
बंद हुआ वह दरवाजा!
पर अब मैं नहीं था तनहा,
मुझमे समाया था समंदर पूरा,
आसमानी एक रंग नीला,
मैं था भीगा भीगा सा,
जीवन सागर में,
डूबा डूबा सा ............
अब ना कोई दस्तक है,
ना कोई बंद दरवाजा,
साथ मेरे खुला आसमां,
और एक मुस्कान हमेशा ........

मिलिंद कुंभारे 
http://britmilind.blogspot.com/दस्तक

अनजानी दुनिया,
और मै तनहा,
पतझड का,
एक सुखा पत्ता.......
न जाने कैसे
जा टकराया,
दी एक दस्तक,
और खुला बंद दरवाजा.......
भीतर था एक चेहरा,
जाना पहचानासा,
कराया उसने परिचय अपना,
मुस्कान नाम था उसका,
पल दो पल उसने,
मुझे निहारा, परखा,
यूँ उदास देख मुझे,
उससे रहा न गया,
और मुस्कुराते हुए कहा,
एक गुजारिश है तुमसे,
तुम यूँही मुरझाया ना करो,
मौसमों का क्या,
आते, जाते रहते है ...........
कभी तुम
सागर किनारे टहला करो,
उन लहरों में,
जीवन है समाया
पूरा समंदर न सही,
कुछ बुंदेही समेट लो,
हथेलियों में अपने ..........
कभी तुम
अंबर की उन,
नीली नीली गहराइयों में
झाँका करो,
पूरा आसमान न सही,
थोडा आसमानी रंग,
जीवन में अपने भर लो ........
यूँ हमेशा तुम
रेगिस्तान के मुसाफिर
न बना करो,
कभी तुम,
रिमझिम बारिश में भीगा करो,
पूरी बरसात न सही,
थोड़ी बुंदे पलकों में अपनी समालो .......
हमदम मेरे,
कभी साथ मेरे चला करो,
संग मेरे,
जीवन सागर में थोडा डूबा करो ........
देखो तनहा तुम कभी न रहोगे,
जीवन से तुम बेहद प्यार करोगे ........

न जाने कब, कैसे,
एक हवा का झोंका,
आ टकराया.... और,
बंद हुआ वह दरवाजा!
पर अब मैं नहीं था तनहा,
मुझमे समाया था समंदर पूरा,
आसमानी एक रंग नीला,
मैं था भीगा भीगा सा,
जीवन सागर में,
डूबा डूबा सा ............
अब ना कोई दस्तक है,
ना कोई बंद दरवाजा,
साथ मेरे खुला आसमां,
और एक मुस्कान हमेशा ........

मिलिंद कुंभारे

1 comment:

  1. बहुत खूब मिलिंदजी !मराठीके साथ -साथ हिंदीमे भी बढीया लिखते है आप !!!!!

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